बिरसा मुंडा, जो एक युवा आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी, उनको 19वीं सदी के अंत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक सशक्त विद्रोह के लिए याद किया जाता है। उनका जन्म 15 नवंबर, 1875 को हुआ था और उनका परिवार अधिकांश एक गांव से दूसरे गांव में घूमता था। वे छोटानागपुर पठार क्षेत्र में मुंडा जनजाति के थे और उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा सलगा में जयपाल नाग के मार्गदर्शन में प्राप्त की। जयपाल नाग की सिफारिश पर, बिरसा ने जर्मन मिशन स्कूल में शामिल होने के लिए ईसाई धर्म अपना लिया। हालांकि, उन्होंने कुछ वर्षों के बाद स्कूल छोड़ दिया।
भारतीय जमींदारों और जागीरदारों के अत्याचार और ब्रिटिश शासन के द्वारा आदिवासी समाज पर किए गए अन्याय के कारण, बिरसा मुंडा का आंतरिक दुःख और क्रोध उत्पन्न हुआ। वह अपनी जाति की गिरती हुई स्थिति को देखकर, अपने आदिवासी समुदाय के पुनर्जीवन के लिए संघर्ष करने का निर्णय लिया। उन्होंने 1895 में “उलगुलान” (विद्रोह) चालू किया। इसका उद्देश्य था ब्रिटिश और जमींदारों के विरुद्ध आदिवासियों की आवाज उठाना और उन्हें अपनी जमीन और अधिकारों की सुरक्षा करने के लिए प्रेरित करना। इस विद्रोह के दौरान, बिरसा मुंडा ने अपने साथी आदिवासियों को भूमि अधिकारों के लिए संघर्ष करने, आत्म-सम्मान और गरिमा के साथ जीने, और अन्याय के खिलाफ लड़ने के लिए प्रेरित किया।
उनकी यात्रा का अंत वर्ष 1900 में हुआ, जब वे ब्रिटिश शासन द्वारा गिरफ्तार किए गए और जेल में रखे गए, जहां उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के बावजूद, बिरसा मुंडा की कहानी और उनके द्वारा किए गए संघर्ष ने आदिवासी समुदाय को सामाजिक अन्याय से लड़ने और अपने अधिकारों की रक्षा करने के लिए प्रेरित किया।
बिरसा मुंडा आज भी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अनदेखे नायकों में से एक के रूप में मनाए जाते हैं। उनके योगदान और बलिदान को मान्यता देने के लिए, झारखंड सरकार ने 15 नवम्बर को “बिरसा मुंडा जयंती” के रूप में मनाने का निर्णय लिया है, जो झारखंड स्थापना दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। यही नहीं, उनकी याद में रांची एयरपोर्ट का नाम ‘बिरसा मुंडा एयरपोर्ट’ रखा गया है। इन्हीं सब योगदानों और त्याग को याद करते हुए, हम आज बिरसा मुंडा की पुण्यतिथि मना रहे हैं। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि कितनी ही कठिनाई हो, सच्चाई और न्याय के पथ पर चलना ही हमें सच्ची आजादी दिला सकता है। उनके बलिदान और योगदान को याद करके, हमें अपने अधिकारों की रक्षा के लिए लड़ने और अपने देश की सेवा करने का संकल्प लेना चाहिए।